Oct 26, 2023, 22:00 IST

महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद श्री कृष्ण जब द्वारका जा रहे थे, तो कुंती ने श्री कृष्ण से कहा तुम मेरे भतीजे हो, लेकिन.........

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महाभारत युद्ध खत्म हो गया था। कौरव सेना खत्म हो गई थी और युधिष्ठिर राजा बन गए थे। जब पांडवों के जीवन में सब ठीक हो गया, तब श्रीकृष्ण ने सोचा कि अब मुझे द्वारिका जाना चाहिए।

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श्रीकृष्ण ने अपनी इच्छा पांडवों को बताई, सभी भगवान को रोकना चाहते थे, लेकिन वे नहीं रुके। श्रीकृष्ण रथ पर बैठ आगे बढ़े तो सामने कुंती खड़ी थीं। रिश्ते में कुंती श्रीकृष्ण की बुआ थीं।
अपनी बुआ को देखकर श्रीकृष्ण रथ से उतरे तो कुंती ने उन्हें प्रणाम किया। ये देखकर श्रीकृष्ण बोले कि आप मेरी बुआ हैं, मेरी माता की तरह हैं। मैं आपको प्रणाम करता हूं, लेकिन आज आप मुझे क्यों प्रणाम कर रही हैं?
कुंती ने कहा कि कृष्ण, तुम मेरे भतीजे हो, लेकिन मैं ये भी जानती हूं कि तुम भगवान भी हो। मुझे अपना भक्त बनने दो।
श्रीकृष्ण ने कहा कि ठीक है। सभी लोग भगवान से कुछ न कुछ मांगते ही हैं, आप भी कुछ मुझसे जो चाहें, वह वरदान मांग सकती हैं।
कुंती ने कहा कि मुझे वरदान में दुख दे दो।
वरदान में दुख की बात सुनकर श्रीकृष्ण बोले कि आप दुख क्यों चाहती हैं? आपका तो पूरा जीवन ही दुखों में बीता है।
कुंती ने कहा कि दुख में तुम बहुत याद आते हो, जीवन में दुख रहेगा तो मैं तुम्हारी भक्ति करती रहूंगी। सुख के दिनों में तो मन भक्ति में लगता नहीं है। मैं हर पल तुम्हारा ही ध्यान करना चाहती हूं, इसलिए दुख मांग रही हूं।
श्रीकृष्ण बोले कि ठीक है, जैसी आपकी इच्छा।
कथा की सीख
इस कथा का संदेश ये है कि जीवन में सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है और जो लोग सुख हो या दुख, हर पल भक्ति करते रहते हैं, उनका मन शांत रहता है। भक्ति करते रहने से दुखों से लड़ने का साहस भी बना रहता है।

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