शिवपुराण की एक कहानी है। ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर रहे थे और जब-जब उनके काम में कोई प्राकृतिक बाधा आ रही थी, तब-तब शिव जी उनकी मदद कर रहे थे।
शिव जी ने ब्रह्मा जी से कहा, 'मैं एक ऐसा रूप धारण करता हूं, जिससे आगे आने वाली संतानें परिपक्व होंगी।' ऐसा कहकर शिव जी ने अर्द्धनारीश्वर रूप धारण किया। शिव जी के इस अवतार में उनका आधा शरीर पुरुष और आधा शरीर स्त्री का था।
शिव जी का ऐसा स्वरूप देखकर ब्रह्मा जी समझ गए कि अगर इंसान परिपक्व होना चाहता है तो उसे अपने अंदर के पुरुष और अपने अंदर की स्त्री को ठीक से जानना चाहिए।
आज भी शिव जी का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप हमें संदेश दे रहा है कि अगर एक पुरुष बाहर के शरीर से पुरुष है और अगर कोई महिला बाहर के शरीर से महिला है तो इनके अंदर आधा शरीर पुरुष का और आधा शरीर महिला का भी होता है। हम जब किसी पुरुष या महिला को देखते हैं तो उन्हें एक यूनिट मान लेते हैं, हम ये भूल जाते हैं कि इनके भीतर दो यूनिट और हैं। शिव जी अर्द्धनारीश्वर स्वरूप के अनुसार एक इंसान तीन यूनिट से बनता है।
सीख
अगर हमें किसी महिला या पुरुष से कोई बात करनी है तो सबसे पहले उसके अंदर के आधे पुरुष और आधी महिला को भी जानने की कोशिश करनी चाहिए। अगर हम दूसरों की भावनाएं, सोच और मनोविज्ञान को समझकर उनके साथ व्यवहार करेंगे तो रिश्तों में आपसी प्रेम और सुख-शांति बनी रहेगी।