Nov 7, 2023, 13:30 IST

विक्रमादित्य साधु-संतों का बहुत सम्मान करते थे, एक दिन एक संत दरबार में पहुंचे, संत को देखकर वे तुरंत संत के पास.......

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उज्जैन के राजा विक्रमादित्य से जुड़ी एक कहानी प्रचलित है। कहानी के मुताबिक एक दिन राजा के दरबार में एक संत पहुंचे। विक्रमादित्य साधु-संतों का बहुत सम्मान करते थे। संत को देखकर वे तुरंत संत के पास पहुंचे और प्रणाम करते हुए पूछा कि बताइए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?

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संत ने कहा कि मुझे खाना चाहिए, लेकिन खाना आपके हक का ही होना चाहिए। ये शब्द सुनकर विक्रमादित्य हैरान रह गए। उन्होंने पहली बार सुना था हक का भोजन। राजा ने संत से पूछा कि कृपया बताइए कि ये हक का भोजन किसे कहते हैं।
संत ने राजा से कहा कि आपके राज्य के अंत में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता है, इस बात का जवाब आपको उस बूढ़े व्यक्ति से मिल जाएगा।
संत की बात सुनकर राजा तुरंत ही उस बूढ़े व्यक्ति के पास पहुंच गए। वह बूढ़ा व्यक्ति एक जुलाहा था। राजा ने उससे पूछा कि कृपया आप मुझे बताएं कि ये हक का भोजन क्या होता है?
जुलाहे ने कहा कि आज मेरे पास जो खाना है, उसमें आधा मेरे हक का है और आधा दूसरों के हक है। अभी कुछ दिन पहले मैं मेरा काम कर रहा था। उस समय अंधेरा हो गया तो मैंने दीपक जलाया। उसी समय कुछ लोग मशालें लेकर यहां से गुजर रहे थे तो मैंने मेरा दीपक बुझा दिया और उनकी मशालों की रोशनी में अपना बाकी का काम कर लिया।
उस काम से मुझे जो धन मिला है, उसमें आधा तो मेरे काम का है और आधा उन लोगों का है, जिनकी मशालों की रोशनी में मैंने काम किया था। इस कारण आज का ये खाना आधा मेरे हक का और आधा बेहक का है।
बूढ़े जुलाहे की बातें सुनकर राजा को समझ आ गया कि संत उससे खुद की मेहनत का खाना मांग रहे हैं। इसके बाद राजा ने खुद की मेहनत से कमाए धन से उस संत को भोजन कराया।
जीवन प्रबंधन
इस कथा से ये संदेश मिलता है कि हम जब भी दूसरों की मदद से कोई काम पूरा करते हैं, तब हमें उन्हें उनके काम का श्रेय जरूर देना चाहिए। दूसरों की मदद के बदले हमें भी उनके लिए कुछ न कुछ जरूर करना चाहिए।

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