एक लोक कथा के अनुसार पुराने समय में दो जुड़वा भाई थे। एक का नाम अजय और दूसरे का नाम विजय था। विजय बहुत लालची और स्वार्थी था। जुड़वा होने के बाद भी दोनों के स्वभाव में और पसंद-नापसंद में जमीन-आसमान का अंतर था। अजय को मीठा पसंद था, जबकि विजय को नमकीन। अजय माता का लाड़ला था, जबकि विजय उसके पिता का प्रिय पुत्र था। अजय के बहुत कम दोस्त थे, जबकि विजय के दोस्तों की संख्या बहुत ज्यादा थी। जब दोनों बड़े हो गए तो उनके पिता ने अपनी संपत्ति को दो बराबर हिस्सों में बांटने की बात कही। इस विषय पर अजय ने कुछ नहीं बोला, लेकिन विजय नाराज हो गया और बोला कि मैं अजय से ज्यादा योग्य हूं मुझे ज्यादा हिस्सा मिलना चाहिए।
दोनों भाइयों के पिता ने कहा कि ठीक हम एक प्रतियोगिता रखते हैं, जो व्यक्ति जीतेगा उसे ज्यादा हिस्सा मिल जाएगा। पिता ने कहा कि कल सुबह तुम दोनों भाई घर से पैदल निकलना और जो व्यक्ति ज्यादा दूरी तय करके सूर्यास्त से पहले घर लौट आएगा उसे संपत्ति में ज्यादा हिस्सा मिलेगा। इसके लिए दोनों भाई तैयार हो गए।
सुबह होते ही दोनों भाइयों में अपनी यात्रा शुरू की। अजय आराम से चल रहा था, जबकि विजय बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा था, वह ये प्रतियोगिता जीतना चाहता था। जब दोपहर हो गई और सूर्य एकदम ऊपर दिखाई देने लगा तो अजय ने सोचा कि अब मुझे घर की ओर लौट जाना चाहिए. इससे आगे जाऊंगा तो सूर्यास्त से पहले घर नहीं पहुंच पाऊंगा, ऐसा सोचकर वह घर की और चल दिया. जबकि विजय ने सोचा कि वह अभी कुछ दूर और जा सकता है। ये सोचकर वह और आगे चल दिया. उसे ध्यान भी नहीं रहा और वह बहुत ज्यादा दूर निकल गया। अब शाम होने लगी थी। वह थक भी चुका था। विजय ने घर की ओर चलना शुरू किया, लेकिन थकान की वजह से वह तेजी से नहीं चल पा रहा था। रास्ते में ही सूर्यास्त हो गया।
लालच की वजह से विजय समय पर घर नहीं पहुंच सका। जबकि अजय सूर्यास्त से पहले ही घर पहुंच गया था। अजय को संपत्ति में ज्यादा हिस्सा मिल गया।
इस कथा की सीख यह है कि लालच और स्वार्थ की वजह से हमारे हाथ से सब कुछ निकल जाता है, बाद में पछताना पड़ता है। इसीलिए इस बुराई से बचना चाहिए।