Nov 7, 2023, 20:00 IST

महाभारत युद्ध अंतिम चरण में था, भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर थे, एक दिन युद्ध खत्म होने के बाद सभी पांडव और......

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भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर थे और महाभारत युद्ध अंतिम चरण में पहुंच चुका था। एक दिन युद्ध खत्म होने के बाद सभी पांडव और द्रौपदी भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे।

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जब पांडव भीष्म के पास पहुंचे तो भीष्म उन्हें धर्म-अधर्म और राजनीति कि बातें बता रहे थे। उस समय द्रौपदी ने भीष्म से पूछा कि आज आप ज्ञान, धर्म की इतनी बातें कर रहे हैं, लेकिन जब भरी सभा में मेरा चीरहरण हो रहा था, तब आप चुप क्यों थे? आप को धर्म जानते हैं, फिर मेरी मदद क्यों नहीं की?
भीष्म पितामह ने द्रौपदी से कहा कि मैं जानता था, एक दिन मुझे इस सवाल का जवाब जरूर देना होगा, जिस दिन तुम्हारा चीरहरण अधर्म हो रहा था, उस समय मैं दुर्योधन का दिया अन्न खा रहा था, मैं गलत लोगों की संगत में फंसा था, दुर्योधन का दिया अन्न पाप कर्मों से कमाया हुआ था। ऐसा दूषित अन्न और गलत संगत की वजह से मैं दुर्योधन के अधीन हो गया था। इस वजह से ही मैं उस दिन तुम्हारी मदद नहीं कर सका।
भीष्म ने आगे कहा कि अब अर्जुन के बाणों की वजह से मेरे शरीर से सारा रक्त बह गया है, अब मेरे शरीर में दुर्योधन के अन्न का प्रभाव नहीं है, इस वजह से मैं धर्म की बातें कर पा रहा हूं।
प्रसंग की सीख
इस प्रसंग में भीष्म पितामह ने संदेश दिया है कि हमें गलत संगत से बचना चाहिए और ऐसा अन्न भी न खाएं जो कामों से कमाया हुआ है, वर्ना हमारी सोच भी दूषित हो सकती है।

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