समुद्र मंथन से जुड़ी कथा है। देवता को अमृत हासिल करने के लिए समुद्र मंथन करना था। काम बहुत बड़ा था, इसलिए असुरों को भी इस काम में शामिल किया गया था। अब समस्या ये थी कि इतना मुश्किल काम कैसे होगा?
समुद्र को मथने के लिए योजना बनाई गई कि मथनी के रूप में मंदराचल पर्वत का उपयोग होगा। ये पर्वत विष्णु जी कच्छप अवतार लेकर अपनी पीठ पर धारण करेंगे।
पर्वत को समुद्र तक लाने के लिए गरुड़ देव की मदद ली गई थी। गरुड़ देव पर्वत को अपनी पीठ पर लेकर आए थे। इस काम के बाद विष्णु जी ने गरुड़ देव को ससम्मान विदा किया।
समुद्र को मथने के लिए वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया। इसके बाद देवता और दानवों ने समुद्र का मंथन किया। इस मंथन से 14 दिव्य रत्न निकले। अंत में अमृत निकला, जिसे विष्णु जी ने मोहनी अवतार लेकर देवताओं को वितरित किया।
जब समुद्र मंथन से जुड़े सभी काम सही ढंग से पूरे हो गए तो विष्णु जी ने सभी देवताओं, असुरों, मंदराचल पर्वत, वासुकी नाग का सम्मान किया और विनम्रता के साथ सभी को अपने-अपने लोक के लिए विदा किया।
इस पूरे आयोजन की योजना विष्णु जी ने ही बनाई थी। किसी ने विष्णु जी से पूछा था कि जब काम पूरा हो गया था तो आपने सभी को अलग-अलग विदा क्यों किया, सभी अपने-अपने हिसाब से लौट जाते?
उस समय विष्णु जी ने कहा था कि जब हमारा लक्ष्य बड़ा होता है तो हमें कई लोगों की मदद लेनी पड़ती है। जब हमारा लक्ष्य पूरा हो जाए तो हमारी मदद करने वाले सभी लोगों का सम्मान करना चाहिए और सभी को सम्मान के साथ विदा करना चाहिए। काम की शुरुआत में और अंत में बुद्धिमानी से काम लिया जाए तो बड़े-बड़े लक्ष्य भी आसानी से पूरे हो सकते हैं।
जीवन प्रबंधन
इस प्रसंग में विष्णु जी ने हमें संदेश दिया है कि जो लोग हमारी मदद करते हैं, उन साथियों का सम्मान जरूर करना चाहिए।