एक व्यक्ति था जो अपने पड़ोसियों को सुखी देखकर जलता रहता था. वह अपने आसपास के लोगों की बुराई करता था, जिस वजह से उसके आसपास के लोग उससे परेशान रहते थे और उससे बात भी नहीं करते थे. एक दिन वह व्यक्ति गांव के मंदिर में पहुंचा और भगवान से पूछने लगा कि उसने उसे सारी सुख सुविधाएं क्यों नहीं दी. तभी उसके सामने भगवान प्रकट हुए.
व्यक्ति ने भगवान से कहा- आप कोई तरीका बताएं जिससे मेरा जीवन सुखी हो जाए और मन शांत रहें. मैं भी सफल होना चाहता हूं, मुझे भी सुख सुविधाएं चाहिए. भगवान ने उसके सामने दो थैले प्रकट किए. उस व्यक्ति को भगवान ने दोनों थैली देते हुए कहा- एक थैले में तुम्हारे पड़ोसियों की बुराइयां है और दूसरे में तुम्हारी बुराइयां हैं. तुम पड़ोसी की बुराइयों वाले थैले को अपनी पीठ पर टांग लेना और अपनी बुराइयां वाला थैला तुम्हें आगे टांगना है.
अपनी बुराइयों को बार बार खोलकर देखते रहना, ऐसा करोगे तो तुम सुखी हो जाओगे. व्यक्ति ने दोनों थैले उठा लिए. लेकिन उसने अपनी बुराइयों वाला थैला पीठ पर टांग लिया और पड़ोसियों की बुराइयों वाला थैला आगे टांग लिया. जब वह बाहर निकला तो पड़ोसियों की बुराइयं देखता और दूसरों को भी दिखाता. भगवान ने जो कहा था- उसने उल्टा किया, इसी वजह से उसके साथ भी उल्टा होने लगा. उसके जीवन में दुख और अशांति ज्यादा बढ़ गई.
वह व्यक्ति फिर कुछ दिन बाद में मंदिर पहुंचा और भगवान प्रकट हुए. उसने भगवान से कहा कि मेरे जीवन में तो परेशानियां और भी ज्यादा बढ़ गई हैं. तो भगवान ने कहा कि तुमने अपनी बुराई पीठ के पीछे और दूसरों की बुराइयां आगे लटका ली. इसी वजह से तुम अपनी बुराइयां नहीं देख पाए और दूसरों की बुराइयों पर ध्यान देते रहे. इसी वजह से तुम्हारा जीवन अशांत हो गया. तुम्हें दूसरों की अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए और अपनी बुराइयों को ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए, तभी तुम्हारा जीवन सुख और शांति से भरपूर होगा.