जब कोई व्यक्ति हमारे पास अपनी शंकाएं लेकर आए तो हमें सबसे पहले उसकी बातें ध्यान से सुननी चाहिए। इसके बाद उसे इस तरह से समझाएं कि उसकी सारी शंकाएं दूर हो जाएं। ये बात शुकदेव और राजा परीक्षित की कथा से समझ सकते हैं।
महाभारत की कथा है। पांडवों के जाने के बाद परीक्षित राजा बन गए थे। उनका राजपाठ अच्छा चल रहा था, तभी उन्हें एक शाप मिला कि सात दिन बाद तक्षक नाग उन्हें डंस लेगा। शाप की वजह से ये तय हो गया था कि सात दिन बाद परीक्षित की मृत्यु होने वाली है।
शाप की वजह से परीक्षित के मन में कई तरह के विचार चल रहे थे। कई शंकाएं थीं। उन्होंने सोचा कि अंतिम सात दिन शुकदेव जी से भागवत कथा सुननी चाहिए। वे पहुंच गए शुकदेव जी के पास।
शुकदेव जी ने कथा सुनाना शुरू की, जब श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग आने वाला था, तब परीक्षित ने शुकदेव को रोककर बीच में ही पूछ लिया कि श्रीकृष्ण गोपियों संग रासलीला करते हैं, मटकी फोड़ते हैं, कभी ज्ञान देते हैं। श्रीकृष्ण का ऐसा व्यक्तित्व क्यों है?
ये प्रश्न सुनकर शुकदेव जी समझ गए कि परीक्षित श्रीकृष्ण को लेकर भ्रमित है। इसके बाद उन्होंने श्रीकृष्ण की कथा से पहले श्रीराम की कथा सुनाई।
श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं, लेकिन दोनों के स्वभाव एकदम अलग हैं। श्रीराम की कथा सुनन के बाद परीक्षित को समझ आ गया कि श्रीराम के त्रेतायुग के समय के हालात अलग थे और द्वापर युग में श्रीकृष्ण के समय के हालात अलग। दोनों कालों मे भगवान का स्वभाव उस समय की परिस्थितियों के हिसाब से थे। शुकदेव जी के कथा सुनाने के तरीके से शुकदेव जी की सभी शंकाएं दूर हो गईं। राम कथा के बाद श्रीकृष्ण के कथा सुनी। भागवत सुनने के बाद उन्हें जन्म-मृत्यु के रहस्य समझ आ गए और मृत्यु का भय दूर हो गया। शाप मिलने के बाद सातवें दिन तक्षक नाग ने परीक्षित को डंस को लिया था।
प्रसंग का संदेश
इस प्रसंग का संदेश ये है कि जब भी हमारे पास कोई व्यक्ति अपनी समस्याएं लेकर आता है तो हमें उसकी बातें ध्यान से सुननी चाहिए। इसके बाद उसे शुरुआत से सारी बातें समझानी चाहिए, जिससे उसकी सभी शंकाएं दूर हो सके।