गांव का एक पोस्टमैन गांव के सभी लोगों को जानता था, क्योंकि वह चिट्ठी देने जाता था। सभी लोग उसकी बहुत इज्जत करते थे। एक दिन उसके पास एक ऐसी चिट्ठी आई, जिस पर गांव से थोड़ी दूर बने घर का पता लिखा हुआ था। आज से पहले पोस्टमैन वहां कभी नहीं गया था। वह चिट्ठी लेकर घर तक पहुंच गया और दरवाजा खटखटाया। उस ने आवाज लगाई।
अंदर से किसी ने कहा चिट्ठी दरवाजे के नीचे से सरका दो। पोस्टमैन यह सुन कर नाराज हो गया और कहा कि मैं इतनी दूर से छुट्टी देने आया हूं। जबकि यह लड़की दरवाजा भी नहीं खोल रही है। गुस्से में उसने बोला कि चिट्ठी के लिए हस्ताक्षर भी करने हैं।
तभी अंदर से आवाज आई कि मैं अभी बाहर आती हूं। कुछ समय तक कोई बाहर नहीं आया। इस कारण पोस्टमैन और ज्यादा नाराज हो गया।
जब दरवाजा खुला तो पोस्टमैन बहुत ही शर्मिंदा हुआ क्योंकि घर के अंदर जो लड़की थी उसके दोनों ही पर नहीं थे। बड़ी ही मुश्किल से वह दरवाजे तक पहुंची और दरवाजा खोला। लड़की ने पोस्टमैन से चिट्ठी ले ली और हस्ताक्षर कर दिए।
एक बार फिर से पोस्टमैन को उसी पते की चिट्ठी मिली। अबकी बार वो चिट्ठी देने गया तो उसने दरवाजे के बाहर से आवाज लगाई और कहा कि मैं चिट्ठी दरवाजे के नीचे से ही डाल देता हूं। हस्ताक्षर करने की जरूरत नहीं है।
तभी अंदर से आवाज आई। किसी ने कहा रुको मैं बाहर आ रही हूं। उस लड़की ने दरवाजा खोल दिया और पोस्टमैन के हाथों में बॉक्स दिया। लड़की ने कहा लीजिए आप के लिए उपहार है।
पोस्टमैन उपहार लेना नहीं चाहता था। लेकिन उसने बहुत विनती की जिस वजह से उसको उपहार लेना पड़ा।
जब पोस्टमैन अपने घर आ गया और उसने बॉक्स खोला तो उसकी आंखों में आंसू आ गए। बॉक्स में नए जूते थे। वह पोस्टमैन लंबे समय से गांव में नंगे पैर ही चिठ्ठियां बांटता था। लेकिन किसी ने इस बात का गौर नहीं किया। जिस लड़की के पैर नहीं थे उसने पोस्टमैन की तकलीफ समझी और उपहार में जूते दिए।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि हमें सिर्फ अपने के लिए ही नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी सोचना चाहिए। दूसरे लोगों की तकलीफों को समझना चाहिए। सच्ची मानवता वही है जो दूसरों के दुखों को समझे और उनकी मदद करें।