एक पंडित जी पूजा पाठ करके अपना जीवन यापन करते थे। एक सेठ ने पंडित जी को दूसरे गांव में पूजा करवाने के लिए आमंत्रण दिया। पूजा समाप्त होने के बाद सेठ ने उस पंडित को दक्षिणा के रूप में मोटी ताजी बकरी दी। पंडित जी काफी खुश हुए और उस बकरी को अपने कंधे पर लादकर गांव की ओर चल दिए।
रास्ते में उनको 3 ठग मिले वह पंडित जी को ठगना चाहते थे। उन तीन ठगों ने एक योजना तैयार की। पहले ठग ने पंडित जी के पास जाकर कहा कि हे ब्राह्मण देवता आप इस कुत्ते को कंधे पर लादकर कहां ले जा रहे हैं। पंडित होते हुए आपको यह काम बिल्कुल भी शोभा नहीं देता है। यह सुनकर पंडित जी ने गुस्से में कहा कि तुम अंधे हो क्या, दिखाई नहीं देता। यह कुत्ता नहीं बकरी है। ठग ने कहा कि आप गुस्सा ना करो मुझे जो दिखाई दिया मैंने आपसे वह कह दिया।
कुछ समय बाद दूसरा ठग पंडित के पास आया तो उसने कहा कि आप बछडे को कंधे पर लादकर कहां पर ले जा रहे हैं। इस बार फिर पंडित जी ने गुस्से में कहा कि मूर्ख यह कोई बछड़ा नहीं बल्कि बकरी है। दूसरे ठग ने भी वही उत्तर दिया।
थोड़ी देर बाद तीसरे ठग ने पंडित जी से आकर कहा कि हे ब्राह्मण देवता आप अपने कंधे पर किस जीव का अस्थि पंजर लेकर जा रहे हैं। यदि आपको कोई देख लेता है तो कोई भी आपको सम्मान नहीं देगा। पंडित जी ने कहा अरे मूर्ख यह तो जीवित बकरी है। तीसरा ठग यह सुनकर वहां से चला गया।
पंडित ने विचार किया यह कोई चमत्कारी जीव है। यह बार-बार अपना रूप बदल लेता है। इस कारण पंडित जी ने उस बकरी को वहां छोड़ दिया और अपने गांव वापस आ गए। थोड़ी देर बाद उन तीन ठगों ने बकरी पर कब्जा कर लिया।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि कभी भी बुरे और अनजान लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। अन्यथा हमेशा नुकसान झेलना पड़ता है। ऐसे लोग मूर्ख बनाने से कभी पीछे नहीं हटते।