Nov 2, 2023, 12:05 IST

एक बार एक संत प्रसिद्ध संत के पास पहुंचा, उसने संत के पैर छुए और सिक्कों से भरी थैली दान में दी, संत ने सेठ से कहा.........

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एक बार एक सेठ प्रसिद्ध संत के पास गया और जाकर संत के चरण स्पर्श किए। सेठ ने संत को दान में 1 सिक्कों से भरी थैली दी और संत से कहा कि महाराज आप मुझे आशीर्वाद दीजिए।

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संत ने कहा कि मुझे तुम्हारा यह दान नहीं चाहिए। मैं भिखारियों का दान नहीं लेता हूं। संत की बात सुनकर सेठ को आश्चर्य हुआ और वह बोला कि महाराज मैं तो धनवान हूं। मेरे पास अनगिनत सोने की मुद्राएं हैं। इसके अलावा मेरे पास बहुत बड़ा घर और बहुत सारी संपत्ति है। लेकिन आप मुझे भिखारी क्यों कह रहे हैं।
संत ने बताया कि यदि तू धनवान है तो फिर तुझे आशीर्वाद क्यों चाहिए। सेठ ने कहा कि महाराज मेरा मन अशांत रहता है। मैं शांति पाना चाहता हूं। मुझे इस राज्य का सबसे अमीर आदमी बनना है। मैं दिन-रात पूरी मेहनत करता हूं। यदि आप मुझे आशीर्वाद देंगे तो मेरा सपना सच हो जाएगा।
संत ने बताया कि तेरी इच्छा का कोई ठिकाना नहीं है तो अपने आप को भिखारी क्यों नहीं मानता है।
जो लोग वासनाओं और कामनाओं में फंसे रहते हैं वह कभी भी धनी नहीं कहे जा सकते। लोगों की इच्छाओं का अंत कभी नहीं होता है। जब तक हमारी इच्छाएं नियंत्रित नहीं होंगी, तब तक हमारा मन शांत नहीं रह सकता। सेठ को संत की बातें समझ आ गई और उसने मोह माया छोड़कर संत को अपना गुरु बनाया।
कहानी की सीख
कहानी से हमें सीखने को मिला कि अक्सर लोग मोह माया के जाल में फंसे रहते हैं। इसीलिए उनका मन अशांत रहता है। हर किसी को नियंत्रित इच्छाएं रखनी चाहिए तभी वह सुखी रह सकता है।

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