प्राचीन काल में एक राजा अपनी प्रजा का हाल-चाल जानने वेश बदलकर नगर में घूमता था. तभी रास्ते में उसने एक बड़ा पत्थर देखा. आते जाते लोगों को उस पत्थर की वजह से काफी तकलीफ हो रही थी, लेकिन कोई भी उस पत्थर को वहां से हटा नहीं हटा रहा था. राजा दूर खड़े होकर देख रहा था. तभी कुछ देर बाद एक मजदूर वहां पहुंचा और उसने पत्थर को हटाने की कोशिश की.
किसी भी व्यक्ति ने उसकी मदद नहीं की. कुछ देर बाद एक और व्यक्ति आया और पत्थर ना हटाने के लिए मजदूर को डांटने लगा. तभी राजा वहां पहुंच गया और राजा ने उस व्यक्ति से कहा- अगर तुम भी इस मजदूर की मदद करोगे तो पत्थर हट जाएगा. यह सुनकर व्यक्ति बोला- मेरा काम पत्थर हटाने का नहीं है. राजा ठेकेदार की बात सुनकर मजदूर के पास गए और उसकी पत्थर हटाने में मदद करने लगे.
कुछ ही देर में पत्थर हट गया. गरीब मजदूर ने मदद करने वाले उस व्यक्ति का धन्यवाद किया. पत्थर हटाने के बाद राजा ने मजदूर के ठेकेदार से कहा- भाई भविष्य में कभी भी तुम्हें एक मजदूर की जरूरत हो तो राज महल आ जाना. यह सुनकर ठेकेदार हैरान रह गया. जब उसने गौर से देखा तो उसे पता चला कि सामने खड़ा व्यक्ति राजा है.
राजा को पहचानते ही ठेकेदार क्षमा मांगने लगा. तब राजा ने उससे कहा- अपने पद का घमंड मत करो. अगर तुम दूसरों की मदद नहीं करोगे तो कभी मान सम्मान नहीं मिलेगा. अहंकार सब कुछ बर्बाद कर देता है. राजा की बात सुनकर ठेकेदार ने अपनी गलती मान ली और भविष्य में दूसरों की मदद करने का वचन दिया.