जंगल में एक किसान लकड़ी लेने के लिए गया। लकड़ी काटते वक्त उसने देखा कि एक लोमड़ी थी जिसके 2 पैर नहीं थे। लेकिन वह पूरी तरह से स्वस्थ दिख रही थी। किसान ने सोचा कि यह लोमड़ी स्वस्थ और जिंदा कैसे हैं। कुछ ही समय बाद उसको शेर की दहाड़ सुनाई दी। वह पेड़ के पीछे छुप गया। उस जगह शेर आ गया। उसके मुंह में शिकार था। वो लोमड़ी के पास रुक गया और अपने शिकार में से थोड़ा हिस्सा लोमड़ी के लिए भी छोड़ दिया।
किसान यह सब पेड़ के पीछे छुप कर देख रहा था। किसान के मन में विचार आया कि भगवान बहुत दयालु है। उसे सिर्फ मनुष्य की ही नहीं बल्कि प्राणियों की भी चिंता है। भगवान सभी को खाना देता है। यह देखकर वह किसान भी वहीं बैठ गया और इंतजार करने लगा कि उसके लिए भी कोई भोजन लेकर आएगा। वह भगवान को याद कर रहा था।
वहां बैठे बैठे काफी समय हो गया। लेकिन कोई भी भोजन लेकर नहीं आया। भूख की वजह से उसका स्वास्थ्य खराब होने लगा। इसी दौरान वहां से एक संत गुजरे। जब संत ने किसान को उस हालत में देखा तो उसे भोजन कराया और पूरी बात पूछी।
किसान ने लोमड़ी और शेर वाली कहानी संत को बता दी। किसान ने कहा कि भगवान ने लोमड़ी पर दया दिखाएं। लेकिन वह मेरे प्रति इतना निर्दयी कैसे हो गया। संत ने कहा कि शायद तुम्हें भगवान का इशारा समझ नहीं आया।
भगवान ने तुम्हें शेर जैसा बनने के लिए कहा। लेकिन तुम लोमड़ी बनने लगे यानी कि तुमको दूसरों से मदद नहीं लेनी है, बल्कि दूसरों की मदद करनी है। भगवान ने मनुष्य को बुद्धि और शक्ति दी है, जिसका उपयोग करके तुम अपना और संसार का कल्याण कर सकते हो। आलस्य छोड़कर मेहनत करें। दूसरों पर बिल्कुल भी आश्रित ना रहे।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें सीखखने को मिलता है कि भगवान ने हर किसी को शक्ति और बुद्धि दी है। हर इंसान अपनी शक्ति और बुद्धि का उपयोग करके संसार में बहुत कुछ कर सकता है। हर मनुष्य को आलस्य छोड़कर परिश्रम करना चाहिए। उसका फल अवश्य मिलेगा।