एक राजा था जो कई सालों से राज्य कर रहा था. उसे राज्य संभालते हुए 10 साल हो गए. लेकिन राज्य में कोई परेशानी नहीं आई. लेकिन अचानक से राज्य में अकाल पड़ गया और लगान भी नहीं आया. इससे राजा को चिंता होने लगी कि खर्चा कैसे घटाया जाए, ताकि काम चल सके. अब राजा सोचने लगा कि कहीं फिर से अकाल ना पड़ जाए. उसे पड़ोसी राजाओं को लेकर भी चिंता होने लगी कि कहीं कोई उन पर हमला ना कर दे.
उसने कई बार अपने मंत्रियों को उसके खिलाफ षड्यंत्र रचते हुए देखा. अब राजा की नींद गायब हो गई, उसे भूख नहीं लगती थी. राजा ने एक दिन अपने शाही बाग के माली को देखा जो हर रोज बड़े स्वाद से प्याज और चटनी के साथ 7-8 रोटियां खा जाता था. राजा के गुरु यह सब देख रहे थे. राजगुरु ने राजा से कहा- अगर तुमको नौकरी ही करनी है तो मेरे यहां कर लो.
मैं ठहरा साधु, मैं तो आश्रम में ही रहूंगा. लेकिन मुझे इस राज्य को चलाने के लिए एक नौकर चाहिए. तुम पहले की तरह महल में रहो. गद्दी पर बैठो और शासन चलाओ. लेकिन इस बार तुम यह काम नौकर के रूप में करोगे. राजा ने गुरु की बात स्वीकार कर ली और वह अपने काम को नौकरी की तरह करने लगा. अब राजा चिंताओं से मुक्त हो चुका था और वह बहुत अच्छे से शासन चलाने लगा.
कुछ महीनों बाद गुरु राजा के महल में आए और पूछा कि अब तुम्हारी भूख और नींद का क्या हाल है. राजा ने कहा- मालिक अब खूब भूख लगती है और मैं आराम से सोता हूं. तब राजा को गुरु ने समझाया कि सब कुछ पहले जैसा ही है. लेकिन तुम अपने काम को बोझ समझ रहे थे और अपना काम कर्तव्य समझकर उसका पालन कर रहे थे. लेकिन अब तुम अपने काम को प्रसन्न होकर कर रहे हो. इसीलिए तुम्हें चिंता नहीं है.
कथा की सीख
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि काम को बोझ समझकर करोगे तो मानसिक तनाव बढ़ेगा. इसीलिए काम को खुश होकर और पूरे मन से करना चाहिए.