प्राचीन काल में एक संत जंगल में कुटिया बनाकर रहते थे, जिसके पास नदी भी थी. वह दिनभर भगवान का भजन करते. जंगल में मिलने वाले फलों से उनका पेट भर जाता. उनकी कुटिया के पास बड़े-बड़े बांस के पौधे उग आए. संत को बांस की टोकरी बनाने की कला आती थी. वह मंत्र जाप करते-करते बांस की टोकरी बनाते और नदी में बहा देते. हर रोज संत ऐसा करते, जिससे उन्हें आनंद मिलता और उनका समय भी बीत जाता.
ऐसा काफी दिन तक चलता रहा. लेकिन एक दिन संत ने सोचा कि यह टोकरी किसी के काम ना आएगी. मुझे इससे कोई लाभ नहीं हो रहा. मुझे बिना वजह मेहनत नहीं करनी चाहिए. इसी वजह से उन्होंने टोकरी बनाना बंद कर दिया. एक दिन वह नदी किनारे टहल रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक बूढ़ी महिला नदी किनारे बैठी है और रो रही है.
संत ने उसके रोने की वजह पूछी. तो महिला ने बताया- कुछ दिन पहले तक इस नदी में एक सुंदर टोकरी लेकर आ जाती थी, जिसे मैं निकालकर गांव में बेच देती थी जिससे मुझे जो धन मिलता था, उससे मेरा जीवन चल रहा था. लेकिन अब वो टोकरी आना बंद हो गई. मेरे खाने की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है. इसीलिए मैं दुखी हूं. महिला की बात सुनकर संत दुखी हुए और अपनी कुटिया में लौट आए और बांस की टोकरी बनाकर फिर से नदी में बहाने लगे. ऐसा वह हर रोज करते, ताकि बूढ़ी महिला की मदद हो सके.
कहानी की सीख
अच्छा काम बिना किसी स्वार्थ के करते रहना चाहिए. इससे किसी ना किसी का भला जरूर होता है.