Nov 7, 2023, 19:00 IST

भीष्म पितामह को अपने पिता शांतनु से इच्छामृत्यु का वरदान मिला था, इस वरदान की वजह से भीष्म पितामह बाणों की.....

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महाभारत के समय भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु के लिए उत्तरायण का दिन चुना था। युद्ध खत्म होने के बाद उत्तरायण के दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे। जानिए भीष्म पितामह से जुड़ी कुछ खास बातें...

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महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ के मुताबिक भीष्म पितामह को अपने पिता शांतनु से इच्छामृत्यु का वरदान मिला था। इस वरदान की वजह से भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर रहने के बाद भी जीवित थे। उन्होंने अपनी मृत्यु के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था।
भीष्म ने पांडवों को खुद बताया था अपनी पराजय का उपाय
जब महाभारत युद्ध शुरू हुआ तो भीष्म को कौरव सेना का सेनापति बनाया गया। युद्ध में पांडव भीष्म को पराजित नहीं कर पा रहे थे। भीष्य लगातार पांडव सेना को खत्म कर रहे थे।
श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर भीष्म जीवित रहेंगे तो पांडवों की जीत नहीं हो पाएगी। इसलिए एक दिन युद्ध के बाद वे सभी पांडवों के लेकर भीष्म के पास पहुंचे। श्रीकृष्ण और पांडवों ने भीष्म से उन्हें पराजित करने का उपाय पूछा था।
उस समय भीष्म पितामह ने बताया था कि वे स्त्रियों पर प्रहार नहीं करते हैं। इसके बाद पांडवों ने योजना बनाई। अर्जुन के रथ पर शिखंडी भी सवार हो गया। युद्ध में जैसे ही भीष्म ने शिखंडी को देखा तो उन्होंने धनुष-बाण नीचे रख दिए, क्योंकि भीष्म शिखंडी को स्त्री ही मानते थे, क्योंकि वह पहले एक स्त्री ही था, बाद में पुरुष बना था।
अर्जुन ने शिखंडी को आगे रखकर भीष्म पर प्रहार किए और भीष्म पराजित हो गए। अर्जुन ने भीष्म को इतने बाण मारे कि वे बाणों की शय्या पर पहुंच गए। इस तरह भीष्म पितामह को अर्जुन ने पराजित कर दिया।
युद्ध के दसवें दिन भीष्म हुए थे पराजित
महाभारत युद्ध के शुरुआती 9 दिनों तक पांडव भीष्म को पराजित नहीं कर पाए थे, लेकिन दसवें दिन अर्जुन ने भीष्म को पराजित किया। इसके बाद 8 दिनों में पांडवों ने कौरवों को हरा दिया था।

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