Oct 27, 2023, 16:30 IST

आखिर दवाइयों का रंग लाल-पीला, गुलाबी-नीला ही क्यों होता है, क्या है इसकी पीछे की वजह, जानिए

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बीमारी को दूर करने के लिए दवाइयां खानी पड़ती हैं. यह दवाइयां रंग-बिरंगी होती है. कुछ दवा लाल रंग की तो कुछ नीली, सफेद या पीले रंग की होती है. पर क्या आपके दिमाग में कभी यह सवाल आया है कि यह दवाइयां रंगीन क्यों होती हैं. अगर आप भी इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे हैं तो यह खबर पूरी पढ़ें. 

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ऐसा कहा जाता है कि बीसवीं सदी तक दवाइयां गोल और सफेद हुआ करती थीं. लेकिन 60 के दशक में दवाओं के रंग में बदलाव होना शुरू हुआ और 1975 में सॉफ्टजेल कैप्सूल तैयार करने की तकनीक में भी बदलाव हुए. आज जेल कैप्सूल के लिए लगभग 80,000 कलर कांबिनेशंस का इस्तेमाल किया जाता है. समय के साथ दवाइयों के रंगों और कोटिंग में कई तरह के बदलाव हुए हैं.
रंगीन दवाओं से दूर होती है कन्फ्यूजन
दवाइयां रंग बिरंगी क्यों बनाई जाती है, इसके पीछे एक तर्क यह दिया जा सकता है कि रंग बिरंगी दवाइयां देखने में अच्छी लगती हैं और कंपनियों को इनकी मार्केटिंग का तरीका मिल जाता है. कई बार बुजुर्ग दवाइयां देखकर कंफ्यूज हो जाते हैं, ऐसे में वह कहीं गलत दवाई ना ले लें, इसका डर रहता है.
एक रिसर्च में यह भी पाया गया कि नियमित रूप से दवाई खाने वाले लोगों को चमकदार और स्पष्ट रंग में दिखने वाली दवाई अच्छी लगती हैं. साथ ही दवाओं का रंग अलग-अलग होने की वजह से गलत दवाई खाने की गुंजाइश भी नहीं रहती है. फार्मा कंपनियां अब तो अपनी ब्रांड इमेज बनाने के लिए भी दवाओं के रंग की मदद लेती हैं.

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