एक राजा ने संत को हजारों स्वर्ण मुद्राओं का दान दिया और कहा कि महाराज मुझे कोई ऐसा उपाय बता दें, जिससे मेरा मन शांत हो जाए। मेरा मन बहुत अशांत है। इस वजह से हमेशा दुखी रहता हूं।
संत ने राजा से कहा कि आप ये मुद्राएं यहां से हटा लें, मैं गरीबों से दान नहीं लेता हूं। ये सुनकर राजा क्रोधित हो गया। उसने कहा कि गुरुदेव मैं इस राज्य का राजा हूं। मेरा साम्राज्य दूर-दूर तक फैला है। आप मुझे गरीब क्यों बोल रहे हैं?
संत ने कहा कि अगर तुम राजा हो तो मेरे पास क्यों आए हो, मुझसे किस बात का आशीर्वाद चाहिए? राजा ने कहा कि गुरुदेव आपका आशीर्वाद मिल जाएगा तो मैं इस पूरे देश का राजा बन सकता हूं।
संत ने कहा कि राजन् तुम्हारी इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। ऐसे तुम अपने आपको गरीबों से अलग कैसे मान सकते हो? जब तक मन में लालच रहेगा, तब तक तुम्हें शांति नहीं मिल सकती है।
कथा की सीख
इस प्रसंग की सीख यह है हमें मन की शांति सुख-सुविधाओं से नहीं, बल्कि इच्छाओं का त्याग करने से मिलती है। जब मन में इच्छाएं रहेंगी हम अशांत ही रहेंगे।