किसी गांव में एक व्यापारी रहता था, उसका बेटा भी उसकी काम में उसकी मदद करता। एक दिन व्यापारी का बेटा किसी काम के चलते जंगल में गया, जहां उसे संत मिले। संत ने बातों ही बातों में उस लड़के को बताया कि मैं काम की बातें बेचता हूं, जो लोगों को परेशानी से बचाती हैं।
लड़के ने संत को कुछ पैसे दिए और बोला कि मुझे भी आपसे एक काम की बात खरीदनी है। संत ने उससे कहा- अगर 2 लोगों के झगड़ों से सुरक्षित निकलना हो तो बीच में तीसरी बात छोड़ देनी चाहिए। व्यापारी के बेटे ने उस बात को अपने मन में बैठा लिया।
अब कुछ दिन बाद जब व्यापारी का बेटा जंगल में घूमने आया तो उसने देखा कि शिकार करने आए मंत्री के बेटे ने हिरण को तीर मार दिया, जिस वजह से वह झाड़ियों में गिर गया। तभी वहां राजकुमार आए और उसने तीर से हिरण को मार डाला। अब इस शिकार पर किसका अधिकार है। इसको लेकर राजकुमार व मंत्री के पुत्र में बहस होने लगी।
विवाद का फ़ैसला दरबार में होगा। गवाह के तौर पर व्यापारी के बेटे को अपने साथ राजदरबार ले गए। राजाने मंत्री के बेटे और राजकुमार की बातें सुनी। इसके बाद उसने व्यापारी के बेटे से पूछा। उसे साधु की बात याद आई कि अगर मैं राजा के बेटे के विरुद्ध कुछ कहता हूं तो इनसे दुश्मनी होगी। लेकिन अगर मंत्री के बेटे के विरुद्ध कुछ कहता हूं तो बाद में वह हमसे बदला लेगा।
इसलिए उसने सोच-विचार कर कहा- यह तो सच है मैंने हिरण को एक पत्थर मारा था, जिससे वह झाड़ियों में जा गिरा और उसकी मौत हो गई। इसके बाद मंत्री के बेटे और राजकुमार ने कहा- यह झूठ बोल रहा है, इसे यहां से भगाओ। इस तरह व्यापारी का बेटा वहां से चला गया और उसने मन ही मन संत को धन्यवाद दिया।
लाइफ मैनेजमेंट
कई बार ऐसा होता है हम बिना सोचे समझे दो लोगों के बीच में फंस जाते हैं और हमारे पास बचने का कोई रास्ता नहीं होता। इसीलिए हमें ऐसी परिस्थितियां निर्मित ही नहीं होने देनी चाहिए।